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Google Gemini AI Nano Banana से अपने रेट्रो साड़ी पिक्चर कैसे बनाएं: स्टेप-बाय-स्टेप गाइड

आजकल AI हर चीज़ कर रहा है – प्लेलिस्ट बनाने से लेकर आउटफिट स्टाइल करने तक। अब इसने भारत की सबसे प्यारी ड्रेस, साड़ी, पर भी अपना जादू चला दिया है। Google के Gemini AI Nano Banana टूल की मदद से सोशल मीडिया पर रेट्रो साड़ी के सपनों जैसे एडिट्स छाए हुए हैं। सोचिए, हल्की चिफ़ॉन साड़ी हवा में उड़ती हुई, 60s और 70s की पोल्का डॉट साड़ी से सजी हुई या सुनहरी रोशनी में चमकती काली साड़ी। सबसे अच्छी बात? इसके लिए प्रोफेशनल एडिटर बनने की जरूरत नहीं है। कुछ आसान स्टेप्स में आप खुद को रेखा, हेमा मालिनी या विंटेज श्रीदेवी की तरह दिखा सकते हैं। साड़ी क्यों खास है साड़ी सिर्फ कपड़ा नहीं है, यह कहानी, यादें और पहचान है। पीढ़ियों से यह शक्ति, गरिमा और स्त्रीत्व का प्रतीक रही है। AI एडिट्स इसे नया रूप दे रहे हैं – पुराने जमाने का चार्म आधुनिक तरीके से पेश कर रहे हैं। चिफ़ॉन साड़ी का जादू चिफ़ॉन साड़ी को रेट्रो बॉलीवुड सेट में या हेंडलूम सिल्क को 70s की सेपिया फोटो में बदलना, हमें याद दिलाता है कि साड़ी ट्रेंड्स से परे है। यही कारण है कि ये AI-जनरेटेड रेट्रो साड़ी पिक्चर्स वायरल हो रहे हैं। Google Gemini AI ...

नेपाल में सोशल मीडिया पर बड़ा बैन: क्या ये जनता की आजादी छीन रहा है या डिजिटल सुरक्षा की जरूरत?

नेपाल में सोशल मीडिया पर बड़ा बैन: क्या ये जनता की आजादी छीन रहा है या डिजिटल सुरक्षा की जरूरत?

हाल ही में नेपाल सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है, जिसने पूरे देश में हलचल मचा दी है। 4 सितंबर 2025 को, सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (पहले ट्विटर), व्हाट्सएप, यूट्यूब समेत 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। 

ये ऐप्स अब नेपाल में ब्लॉक हो जाएंगे क्योंकि ये प्लेटफॉर्म्स ने सरकार के साथ रजिस्ट्रेशन नहीं कराया। लेकिन बड़ा सवाल ये है - क्या ये कदम फेक न्यूज और नफरत फैलाने वाले कंटेंट पर रोक लगाने के लिए जरूरी है, या फिर ये आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है? आइए, इस मुद्दे को सरल भाषा में समझते हैं।


पहले जानिए क्या हुआ है?

नेपाल के कम्युनिकेशंस और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री ने 28 अगस्त को इन प्लेटफॉर्म्स को 7 दिनों का अल्टीमेटम दिया था कि वे नेपाल में रजिस्टर हो जाएं। 

रजिस्ट्रेशन का मतलब है - इन कंपनियों को नेपाल में अपना ऑफिस खोलना, एक लोकल कॉन्टैक्ट पर्सन रखना और लोकल लॉ के मुताबिक काम करना। लेकिन मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप की पैरेंट कंपनी), गूगल (यूट्यूब), एक्स जैसी बड़ी कंपनियां इस पर राजी नहीं हुईं। नतीजा? 4 सितंबर से नेपाल टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी को इन ऐप्स को ब्लॉक करने का आदेश दे दिया गया।

केवल टिकटॉक, वाइबर, विटक, निंबज और पॉपो लाइव जैसे कुछ ऐप्स रजिस्टर हो चुके हैं, इसलिए वे चलते रहेंगे। टेलीग्राम और ग्लोबल डायरी का रजिस्ट्रेशन प्रोसेस चल रहा है। बाकी सब पर बैन!


सरकार की वजहें: डिजिटल सुरक्षा और कंट्रोल

सरकार का कहना है कि ये बैन फेक न्यूज, हेट स्पीच, ऑनलाइन फ्रॉड और विदेशी प्रभाव को रोकने के लिए है। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी अगस्त में आदेश दिया था कि कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बिना रजिस्ट्रेशन के नहीं चल सकता, ताकि अनचाही कंटेंट को मॉनिटर किया जा सके।

  • फेक न्यूज और नफरत: नेपाल में सोशल मीडिया पर अफवाहें और हेट स्पीच से समाज में तनाव बढ़ता है। रजिस्ट्रेशन से सरकार आसानी से कंपनियों से कह सकती है कि ऐसी कंटेंट हटा दो।
  • विदेशी प्रभाव: कई नेपाली लोग विदेश में काम करते हैं और सोशल मीडिया से जुड़े रहते हैं। लेकिन सरकार को लगता है कि बिना लोकल कंट्रोल के ये प्लेटफॉर्म्स विदेशी एजेंडा चला सकते हैं।
  • टैक्स और रेवेन्यू: रजिस्ट्रेशन से कंपनियां नेपाल में टैक्स देंगी, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है।

मिनिस्टर प्रिथ्वी सुब्बा गुरुंग ने कहा कि कंपनियों को कई बार रिमाइंडर दिए गए, लेकिन वे इग्नोर करती रहीं। ये फैसला भारत, यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तरह है, जहां सोशल मीडिया पर सख्त रूल्स हैं।


लेकिन क्या ये आजादी छीनना है?

दूसरी तरफ, कई एक्सपर्ट्स और यूजर्स इसे लोकतंत्र पर हमला मान रहे हैं। नेपाल में 80% इंटरनेट ट्रैफिक सोशल मीडिया से आता है। ये बैन लाखों लोगों की जिंदगी प्रभावित करेगा:

  • अभिव्यक्ति की आजादी: सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय शेयर करते हैं, न्यूज पढ़ते हैं और बिजनेस करते हैं। बैन से ये सब रुक जाएगा। डिजिटल राइट्स नेपाल के प्रेसिडेंट भोला नाथ ढुंगाना ने इसे सरकार का "कंट्रोलिंग" ऐटिट्यूड बताया।
  • इकोनॉमिक इम्पैक्ट: क्रिएटर्स, बिजनेस और एडवरटाइजर्स को नुकसान। जैसे, फेसबुक ने हाल ही में नेपाल में मोनेटाइजेशन शुरू किया था, जो अब बंद हो जाएगा। विदेश में रहने वाले नेपाली परिवारों से कनेक्ट रहने के लिए व्हाट्सएप जैसी ऐप्स जरूरी हैं - वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, रेमिटेंस नेपाल की GDP का 33% है।
  • VPN और अल्टरनेटिव्स: लोग VPN यूज करके ऐप्स ऐक्सेस कर सकते हैं, लेकिन ये महंगा और स्लो होगा। पहले टिकटॉक बैन के समय ISP को करोड़ों का नुकसान हुआ था।

क्रिटिक्स कहते हैं कि सरकार के रूल्स बहुत सख्त हैं, जैसे हर कंटेंट पर मॉनिटरिंग, जो प्राइवेसी का उल्लंघन है। उज्ज्वल आचार्य जैसे एक्सपर्ट्स ने इसे नेपाल की डेमोक्रेटिक इमेज को नुकसान पहुंचाने वाला बताया।


दोनों तरफ का बैलेंस: क्या सॉल्यूशन है?

ये मुद्दा ब्लैक एंड व्हाइट नहीं है। एक तरफ, डिजिटल सुरक्षा जरूरी है - फेक न्यूज से चुनाव प्रभावित होते हैं और साइबर फ्रॉड बढ़ रहा है। लेकिन दूसरी तरफ, बैन से आम लोग परेशान होंगे और नेपाल की ग्लोबल इमेज खराब हो सकती है। शायद बेहतर तरीका ये हो कि सरकार रूल्स को आसान बनाए और कंपनियों से बातचीत करे, बजाय सीधे बैन के। कई देशों में रजिस्ट्रेशन यूजर नंबर पर डिपेंड करता है, न कि हर ऐप पर।

आखिर में, ये फैसला नेपाली जनता के लिए विचारणीय है। क्या आप मानते हैं कि ये सुरक्षा के लिए जरूरी है, या फिर आजादी पर पाबंदी? कमेंट्स में अपनी राय शेयर करें (अगर कोई अल्टरनेटिव प्लेटफॉर्म बचा हो!)। स्टे कनेक्टेड और अपडेटेड रहें - शायद जल्दी कोई चेंज आए!

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